Thursday, 24 November 2011

Baleshwar Temple, Champawat

Admist the main city of Champawat is the historical "Baleshwar Temple". Built by the rulers of Chand Dynasty, Baleshwar Temple is a marvelous symbol of stone carving. There isn't any historical manuscript that dates the Baleshwar temple, however it is believed to be built between 10 - 12 century A.D.
Baleshwar temples at Champawat has been declared as a National Heritage Monument and is looked after by Archological Survey of India (ASI) since 1952. As the Champawat city has grown up, many residential buildings have been built up in the close proximity of Baleshwar Temple which may harm this national heritage. Is the ASI sleeping???The main Baleshwar temple is dedicated to Lord Shiva (who is also know as Baleshwar). There are two other temples in the compound of Baleshwar, one dedicated to Ratneshwar and other to Champawati Durga. The temple is built on South Indian Architecture with magnificent Stone Carving works. Close to the Baleshwar Temple is a "Naula" (Fresh water resource) which has now dried up. On the day of MahaShivRatri, a very crowded fair is held in the Baleshwar Temple compound.



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The entire Kumaon region by virtue of its proximity with the Himalayas, has by tradition and legends been associated with numerous gods and goddesses. Champawat district has acquired the unique distinction of being the holy land of gods and therefore, temples of very large variety dedicated to diverse gods including local deities and demons of restricted influence are spread over the whole expanse. These temples either possess the architectural features of great interest to a scholar or provide sustenance to faith through setting local, associated legends or fantastic design formations. The urge to come back to them is irresistible in as much as they exercise an impact on human psyche that beats all scientific logic. Apart from this these temples are of great interest to a casual tourist from the point of view of design, landscape around and several other features unique to them.






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कभी चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रहे चंपावत के प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण विभिन्न ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थल इसकी गौरवगाथा को खुद ही बयां करते हैं। इन स्थलों में मौजूद भित्ती चित्र व कलाकृतियां इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां मौजूद सभी स्थलों में से सबसे महत्वपूर्ण व पर्यटकांे के आकर्षण का केंद्र है बालेश्वर का मंदिर।

नगर की मुख्य सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर शिल्प का बेजोड़ नमूना है। 12 वीं सदी में कत्यूरी शासकों द्वारा निर्मित बालेश्वर मंदिर समूह अपने समय में देश में प्रचलित सर्वोत्तम शिल्प शैलियों की अनूठी मिशाल है। माना जाता है कि चंपावत के अधिकांश शिल्प कत्यूरी राजवंश ने ही निर्मित किये थे। मंदिरों के समूह बालेश्वर परिसर में श्रृंगार की देवी चंपा व बाली, सुग्रीव सहित अन्य मंदिर भी हैं। मूल रूप से इसे शिव का मंदिर माना जाता है। जानकारों के मुताबिक बलुआ व ग्रेनाइड किस्म के पत्थरों से निर्मित मंदिर समूह की छतें संकुल पर्वतों की भांति निर्मित हैं। शिखर के ठीक नीचे गर्भ गृह बनाये गये हैं। मंदिरों में बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर सुंदर कलात्मक मूर्तियां बनाई गयी हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले चार खंभों पर टिके मंडप इसको अलग ही रूप प्रदान करते हैं। मंडप की उल्टी छतों पर नृत्य करती अप्सराओं की मूर्तियां निर्मित की गई हैं।

मंडप के गर्भगृह के अंतराल में कई श्रृंगारिक मूर्तियां निर्मित है। गुंबदनुमा मंदिर के बीचों बीच शिवलिंग की स्थापना की गई है। मंदिर परिसर में कुछ समय व्यतीत करने व मूर्तियों को गौर से निहारने पर प्रतीत होता है मानों हम कहीं स्वर्ग लोक में हों और विभिन्न देवी-देवता, अप्सराएं व पशु-पक्षी क्रीडा कर रहे हों। इन मूर्तियों को निहारने पर ऐसा लगता है जैसे वो अभी तुरंत सजीव हो नृत्य कर उठेंगी। मंदिर की दीवारों पर नृत्य करती अप्सराएं व वाद्ययंत्र बजाती मूर्तियां पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने लगती हैं। इन मूर्तियों की विभिन्न प्रकार की भाव भंगिमाएं ऐसी प्रतीत होती हैं मानों जीवन का सारा रंग इनमें ही डाल दिया गया हो। पत्थरों को छेनी व हथौड़े से काटकर बनाई गई ये बेजान मूर्तियां पास से देखने पर ऐसी लगती हैं जैसे तुरंत ही संवाद करने लगेंगी। इस मंदिर में निर्मित मूर्तियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें हर किसी को अपने व्यक्तित्व की झलक देखने को मिलती है। मंदिर में निर्मित मूर्तियों में जहां विरह झेल रहे प्रेमी को अपनी प्रेमिका नजर आती है वहीं धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को अपने ईष्ट की झलक दिखाई देती है।

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