Tuesday 15 November 2011

Daksheswara Mahadev Temple, Haridwar

Daksheswara Mahadev temple, Kankhal
दक्षेश्वर महादेव मन्दिर - CLICK HERE FOR HINDI DESCRIPTION
संसार को माया का सबसे बड़ा अड्डा कहा जाता है। कहते हैं कि जो माया की भूल-भुलैया में एक बार फंस जाता है वह दोबारा इससे बाहर नहीं निकल पाता। पर जैसे-जैसे उसका अंतिम समय आता है, इस मायाजाल से बाहर निकलना चाहता है। फिर शुरू होता है सिलसिला भटकाव का। पर एक स्थान ऐसा भी है जहां माया का प्रभाव नहीं चल पाता। वह स्थान है- दक्षेश्वर महादेव मंदिर। कथा- ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से भगवान शिव का विवाह हुआ। कुछ समय बाद दक्ष को पूरे ब्रह्माण्ड का अधिपति बना दिया गया। इससे दक्ष में अभिमान आ गया। कुछ समय बाद दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया। उसमें सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया पर अभिमानी दक्ष ने शिव को उस यज्ञ से बहिष्कृत कर दिया। किसी तरह सती को यह पता चला तो उन्होंने शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी। पहले तो शिव ने उन्हें समझाया पर जब वे नहीं मानीं तो उन्होंने सती को वहां जाने की अनुमति दे दी। सती अपने पिता के घर पहुंची तो दक्ष ने उनसे आंखें फेर लीं। सती यज्ञ में शिव का भाग न देखकर रूष्ट हो गईं और सभी को बुरा-भला कहने लगीं। यह सुनकर दक्ष ने भी शिव निंदा प्रारम्भ कर दी।यह सुनकर सती को बड़ा दुख हुआ और उन्होंने योगाग्रि से अपने शरीर को भस्म कर दिया। यह देखकर शिव के गणों ने दक्ष यज्ञ पर हमला कर दिया और वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट कर उसे यज्ञ कु ण्ड में फेंक दिया। यह देखकर देवताओं में हडकंप मच गया और उन्होंने शिव स्तुति प्रारम्भ कर दी। उनकी स्तुति उन्होंने सभी को जीवनदान दे दिया और दक्ष के शरीर पर बकरे का सिर लगाकर उसे भी जीवित कर दिया। बाद में शिव की अनुमति से दक्ष ने अपना यज्ञ पूरा किया। बाद में शिव ने कहा कि यह सब माया के कारण हुआ था इसलिए इस क्षेत्र का नाम मायाक्षेत्र होगा और इस क्षेत्र के दर्शन मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाएगी। इस क्षेत्र का प्रभाव ही ऐसा है कि जो भी यहां आता है वह अपने आप को ईश्वर के अधिक निकट पाता है। कैसे पहुचें- दक्षेश्वर महादेव का मंदिर हरिद्वार में है। हरिद्वार भारत का प्रमुख धार्मिक शहर है। यहां पहुचने के लिए दिल्ली से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
Daksheswara Mahadev or Daksha Mahadev temple is a Hindu temple dedicated to Lord Shiva, located in the town of Kankhal, about 4 km from Haridwar in the Haridwar district of Uttarakhand, India. Named after King Daksha Prajapati, the father of Sati or Dakshayani, Lord Shiva 's first wife. Daksha is one of the fourteen Prajapatis, creator deities, presiding over procreation, and protector of life, in Hindu mythology.
The present temple was built by Queen Dhankaur in 1810 AD and rebuilt in 1962, and is a place of pilgrimage for Shaivaite devotees on Maha Shivaratri.
The legend of Daksha
Shiva carrying the corpse of his consort Dakshayani (Sati)
The mythological story as mentioned in the Mahabharata and other sacred texts of Hinduism, details the episode when King Daksha Prajapati, the father of Sati, Lord Shiva 's first wife, performed Yagna at this place, he did not invite his son-in-law Lord Shiva, thus Sati felt insulted. Nevertheless she arrived, when she found her husband being spurned by her father, she burnt herself in the yagya kunda itself. Shiva burned with anger, sent the terrible demi-god Vīrabhadra, Bhadrakali and also his ganas.
On the direction of Shiva, Virabhadra appeared with Shiva's ganas in the midst of Daksha's assembly like a storm wind and waged a fierce war on the gods and mortals present culminating in the beheading of Daksha, and later being bestow the head of a goat, at the behest of Brahma and other gods. Much of the details of the famous Ashvamedha Yagna (Horse Sacrifice) of Daksha are available in the Vayu Purana
Other structures
Standing next to the main temple is the Das Mahavidya temple, dedicated to the Mahavidyas, a venue for devotees of Devi to congregate for special pujas, during the Navratri celebrations. Also within the complex, there is a temple dedicated to Ganga. Next to the temple is the Daksha Ghat on the Ganges and close by is the Nileshwar Mahadev Temple.
Das Mahavidya temple, within Daksha temple complex, Kankhal, Haridwar
Ganga Maa temple within Daksheshwar Mahadev temple, Kankhal

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