Wednesday 23 November 2011

Varahi(Barahi) Devi temple, Devidhura

Varahi Devi temple, Devidhura is famous for Devidhura Mela, held every year on the auspicious day of Raksha Bandhan. The place Devidhura is situated at a junction of Almora, Pithoragarh, and Nainital districts. Devidhura Mela is famous for its enchanting dance and folk songs and also for its Bagwal. 
Goddess Varahi is worshipped in this temple on this day in a rare way. In this fair, the image of Goddess Varahi is preserved in a locked brass casket. This casket is taken out in a procession to a nearby mountain spring. At this place, a blindfolded priest ritually bathes the image and again keeps it in the casket. The Goddess is worshipped throughout the night and the next morning and the famous Bagwaal fair takes place.



Devidhura Mela is marked by two groups of people (khams) fighting a battle in front of the temple by throwing stones at each other while trying to protect themselves with the help of big roof-like shields. The fighting ends soon after the priest appears and both the groups meet and reconcile. Watching the Bagwal is quite a thrilling experience. Every year, many people gather to watch this event. The old vigour of Devidhura fair makes it stand out. 
 
How to Attend: Devidhura Mela takes place at Champawat, which is easily accessible.



  • By Air: The nearest airport is at Pant Nagar at a distance of 206 kilometer. 
  • By Rail: The nearest railhead is at Kathgodam at a distance of 180 kilometer. 
  • By Road: Bageshwar is linked with all the major towns of the state of Uttaranchal. Taxis are available as local means of transport.

बगवाल मेला, बराही देवी मंदिर - Click Here
इस मंदिर के प्रांगण में दो गुट एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं। वे पत्थर तब तक फेंकते रहते हैं, जब तक कि एक आदमी के खून के बराबर खून न बह जाए। खून बहाने का यह कार्यक्रम किसी झगड़े के कारण नहीं होता, बल्कि ये लोग यहां की देवी मां बराही को खुश करने के लिए एकदूसरे का खून बहाते हैं। जी हां, उत्तराखंड के चम्पावत जिले के देवीधुरा गांव में यह परंपरा सदियों से चली जा रही है। इसके तहत श्रवण पूर्णिमा यानी रक्षा बंधन के दिन विभिन्न जातियों के लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ दो गुट में यहां के बराही देवी मंदिर प्रांगण में इकट्ठा होते हैं और मां बराही देवी को खुश करने के लिए एक-दूसरे पर पत्थर फेंक कर एक आदमी के खून के बराबर खून बहाते हैं।

इस मेले का नाम है बगवाल मेला। इसका आयोजन देवीधुरा में होता है, इसलिए यह देवीधुरा बगवाल मेला के नाम से ज्यादा लोकप्रिय है। बगवाल पत्थर फेंकने की प्रक्रिया को कहते हैं। पिछले दो-तीन वर्षों से 13 दिनों तक चलने वाले इस मेले का मुख्य आकर्षण रक्षाबंधन के दिन पत्थर फेंक कर एक-दूसरे का खून बहाना ही होता है। सदियों से चली आ रही इस स्थानीय परंपरा के तहत विभिन्न जातियों के लोग (विशेष रूप से महर और फव्यार्ल जातियों के लोग) सैकड़ों की संख्या में ढोल-नगाड़ों के साथ किंरगाल की बनी हुई छतरी (छन्तोली) के साथ खूब उल्लासपूर्वक विभिन्न दिशाओं से यहां पहुंचते हैं और दो गुट में बंटकर यहां एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं।

लोक मान्यता है कि किसी समय देवीधुरा के सघन वन में बावन हजार वीर और चौंसठ योगनियों के आतंक से मुक्ति देकर स्थानीय जन से देवी ने नर बलि की मांग की। इसके लिए निश्चित किया गया कि पत्थरों की मार से एक व्यक्ति के खून के बराबर निकले खून से देवी को तृप्त किया जाएगा। इसी प्रथा के तहत यह मेला हर वर्ष आयोजित होता है। पत्थर फेंकने का यह कार्यक्रम दोपहर के समय लगभग 10-15 मिनटों का होता है। बगवाल का समापन शंखनाद से होता है। मंदिर के पुजारी को जब अंत:करण से विश्वास हो जाता है कि एक आदमी के खून के बराबर खून बह गया होगा, तब वे तांबे के छत्र और चंबर के साथ मैदान में आकर बगवाल सम्पन्न होने की घोषणा करते हैं।

स्थानीय जिला पंचायत द्वारा आयोजित किया जाने वाला यह मेला इस वर्ष 20 अगस्त से शुरू होगा और एक सितम्बर तक चलेगा। 20 अगस्त से मां बराही देवी के मंदिर में विधि विधान से पूजा-अर्चना शुरू होगी। 24 अगस्त को यानी श्रवण पूर्णिमा के दिन बगवाल का आयोजन होगा। रात में जागरण का कार्यक्रम होता है। इसके अगले दिन यानी 25 अगस्त को देवी की पालकी निकाली जाती है। बक्से में रखे देवी विग्रह की शोभा यात्रा पास ही स्थित शिव मंदिर तक ले जाते हैं। उसके बाद गांव में व्यापारिक मेला शुरू हो जाता है। इस वर्ष यह मेला पहली सितम्बर तक चलेगा। इस अवसर को देखने के लिए हजारों की संख्या में आसपास के लोग तो जुटते ही हैं, काफी संख्या में पर्यटक भी यहां पहुंचते हैं।

कैसे पहुंचें

हवाई मार्ग :
निकटतम हवाई अड्डा पंत नगर है, जो यहां से 206 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेल मार्ग: टनकपुर यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन है। टनकपुर से जिला मुख्यालय चंपावत की दूरी 75 किलोमीटर है और चम्पावत से देवीधुरा 40 किमी।
सड़क मार्ग :
अगर आप नैनीताल की ओर से जाते हैं तो अल्मोड़ा की ओर जाने वाली सड़क पर शहर फाटक पर बस छोड़नी होगी। नैनीताल से शहर फाटक 75 किलोमीटर है। यहां से देवीधुरा 40 किलोमीटर है। इस दूरी को मिनी बस या छोटी टैक्सियों की सहायता से तय किया जा सकता है। टनकपुर से देवीधुरा 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कहां ठहरें:
देवीधुरा प्राकृतिक रूप से भी एक खूबसूरत गांव है, जहां काफी पर्यटक आते रहते हैं। यहां जिला पंचायत, पीडब्ल्यूडी और वन विभाग के गेस्ट हाउस हैं, लेकिन इस मेले के दौरान काफी संख्या में लोग आते हैं। इसलिए इस दौरान पर्यटक चम्पावत और देवीधुरा से 44 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लोहाघाट में भी ठहर सकते हैं।

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